ध्यान रखें यहां बताए जा रहे सभी उपाय ज्योतिष से संबंधित हैं. इस कारण इन्हें आस्था और विश्वास के साथ करना चाहिए. उपाय करते समय मन में किसी प्रकार की शंका ना हो , इसका ख़याल रखे.
0901. पितृपक्ष - यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता.
0902. पितृपक्ष - रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं. आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए.
0903. पितृपक्ष - वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है.
0904. पितृपक्ष - शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए. धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है. अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए.
0905. पितृपक्ष - श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए. जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है.
0906. पितृपक्ष - स्वर्ण और नए वस्त्रों की खरीदारी नहीं करनी चाहिए. ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि पितृपक्ष उत्सव का नहीं बल्कि एक तरह से शोक व्यक्त करने का समय होता है उनके प्रति जो अब हमारे बीच नहीं रहे.
0907. पीपल - के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोंपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं. हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है. सर्वाधिक ऑक्सीजन नि:सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है. सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है.
0908. पीपल - के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें. फिर वापस घर आ जाएँ एवं पीछे मुड़कर न देखें. धन लाभ होगा.
0909. पीपल - के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं. आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा.
0910. पीपल - के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं. ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें. बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा.
0911. पीपल - के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें. लाभ होगा.
0912. पीपल - के वृक्ष पर प्रतिदिन जल अर्पित करने और हनुमान चालीसा पढ़ने से पितृदोष का शमन होता है. पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है.
0913. पीपल - के वृक्ष में जल चढ़ाएँ तथा अपनी सफलता की मनोकामना करें और घर से बाहर शुद्ध केसर से स्वस्तिक बनाकर उस पर पीले पुष्प और अक्षत चढ़ाए. घर से बाहर निकलते समय दाहिना पाँव पहले बाहर निकालें. लाभ होगा.
0914. पीपल और वटवृक्ष की परिक्रमा का विधान है. स्कंद पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है. पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है. इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है. इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है.
0915. पूजन - कर्म में इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पूजा के बीच में दीपक बुझना नहीं चाहिए. ऐसा होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है.
0916. पूजन - किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से किया जाता है. लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है- कपूरगौरं मंत्र "कपूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्. सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि. . " अर्थ : - कपूरगौरं- कपूर के समान गौर वर्ण वाले. करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं. संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं. भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं. सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है. मंत्र का पूरा अर्थ- जो कपूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है.
0917. पूजन - के लिए ऐसे चावल का उपयोग करना चाहिए जो अखंडित (पूरे चावल) हो यानी टूटे हुए ना हो. चावल चढ़ाने से पहले इन्हें हल्दी से पीला करना बहुत शुभ माना गया है. इसके लिए थोड़े से पानी में हल्दी घोल लें और उस घोल में चावल को डूबोकर पीला किया जा सकता है.
0918. पूजन - के समय घंटी अवश्य बजाएं, साथ ही एक बार पूरे घर में घूमकर भी घंटी बजानी चाहिए. ऐसा करने पर घंटी की आवाज से नकारात्मकता नष्ट होती है और सकारात्मकता बढ़ती है.
0919. पूजन - गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है. इनकी पीठ के दर्शन करना वर्जित किया गया है. गणेशजी के शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं. गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है. गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो जाती है. ऐसा माना जाता है श्रीगणेश की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है. गणेशजी की पीठ के दर्शन करने वाला व्यक्ति यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव बढ़ जाता है. इसी वजह से इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए. जाने-अनजाने पीठ देख ले तो श्री गणेश से क्षमा याचना कर उनका पूजन करें. तब बुरा प्रभाव नष्ट होगा.
0920. पूजन - गीले कपड़ों में करनी चाहिए धार्मिक स्थलों की परिक्रमा. अगर आप ज्यादा फायदा उठाना चाहते हैं तो आपके बाल गीले होने चाहिए. इसी तरह और ज्यादा फायदा उठाने के लिए आपके कपड़े भी गीले होने चाहिए. पहले हर मंदिर में एक जल कुंड जरूर होता था, जिसे आमतौर पर कल्याणी कहा जाता था. ऐसी मान्यता है कि पहले आपको कल्याणी में एक डुबकी लगानी चाहिए और फिर गीले कपड़ों में मंदिर भ्रमण करना चाहिए, जिससे आप उस प्रतिष्ठित जगह की ऊर्जा को सबसे अच्छे तरीके से ग्रहण कर सकें.
0921. पूजन - घर के मंदिर के आसपास शौचालय होना भी अशुभ रहता है. अत: ऐसे स्थान पर पूजन कक्ष बनाएं, जहां आसपास शौचालय न हो.
0922. पूजन - घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए. शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि यदि हम मंदिर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो शिवलिंग हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा नहीं होना चाहिए. शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में छोटा सा शिवलिंग रखना शुभ होता है. अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी छोटे आकार की ही रखनी चाहिए. अधिक बड़ी मूर्तियां बड़े मंदिरों के लिए श्रेष्ठ रहती हैं, लेकिन घर के छोटे मंदिर के लिए छोटे-छोटे आकार की प्रतिमाएं श्रेष्ठ मानी गई हैं.
0923. पूजन - घर में जिस स्थान पर मंदिर है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए.
0924. पूजन - घर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होगा तो बहुत शुभ रहता है. इसके लिए पूजा स्थल का द्वार पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए. यदि यह संभव ना हो तो पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व दिशा में होगा तब भी श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं.
0925. पूजन - घर में पूजा स्थल के ऊपर कोई कबाड़ या भारी चीज न रखें.
0926. पूजन - घर में मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया जाना चाहिए, जहां दिनभर में कभी भी कुछ देर के लिए सूर्य की रोशनी अवश्य पहुंचती हो. जिन घरों में सूर्य की रोशनी और ताजी हवा आती रहती है, उन घरों के कई दोष स्वतः: ही शांत हो जाते हैं. सूर्य की रोशनी से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है.
0927. पूजन - घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए. इन सभी की पूरी जानकारी किसी ब्राह्मण (पंडित) से प्राप्त की जा सकती है.
0928. पूजन - घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती उपयोग किया जाना चाहिए. जबकि तेल के दीपक के लिए लाल धागे की बत्ती श्रेष्ठ बताई गई है.
0929. पूजन - तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है. इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है.
0930. पूजन - तुलसी के बिना ईश्वर की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती. तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है. मंगल, शुक्र, रवि, अमावस्या, पूर्णिमा, द्वादशी और रात्रि और संध्या काल में तुलसी दल नहीं तोड़ना चाहिए. तुलसी तोड़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक है.
0931. पूजन - दीपक हमेशा भगवान की प्रतिमा के ठीक सामने लगाना चाहिए. कभी-कभी भगवान की प्रतिमा के सामने दीपक न लगाकर इधर-उधर लगा दिया जाता है, जबकि यह सही नहीं है.
0932. पूजन - देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से अवश्य धो लेना चाहिए.
0933. पूजन - पूजन कक्ष में पूजा से संबंधित सामग्री ही रखना चाहिए. अन्य कोई वस्तु रखने से बचना चाहिए.
0934. पूजन - पूजन में कभी भी खंडित दीपक नहीं जलाना चाहिए. धार्मिक कार्यों में खंडित सामग्री शुभ नहीं मानी जाती है.
0935. पूजन - पूजन स्थल पर पवित्रता का ध्यान रखें. चप्पल पहनकर कोई मंदिर तक नहीं जाना चाहिए. चमड़े का बेल्ट या पर्स अपने पास रखकर पूजा न करें. पूजन स्थल पर कचरा इत्यादि न जमा हो पाए.
0936. पूजन - पूजा में बासी फूल, पत्ते अर्पित नहीं करना चाहिए. स्वच्छ और ताजे जल का ही उपयोग करें.
0937. पूजन - पूर्वजों के चित्र लगाने के लिए दक्षिण दिशा क्षेत्र रहती है. घर में दक्षिण दिशा की दीवार पर मृतकों के चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन मंदिर में नहीं रखना चाहिए.
0938. पूजन - भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पीले रंग का रेशमी कपड़ा चढ़ाना चाहिए. माता दुर्गा, सूर्यदेव व श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग का, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सफेद वस्त्र अर्पित करना चाहिए.
0939. पूजन - भगवान शिव को हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए और न ही शंख से जल चढ़ाना चाहिए (शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ. चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है. परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है. इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है)
0940. पूजन - भगवान सूर्य की 7, श्रीगणेश की 3, विष्णुजी की 4 और शिवजी की 1/2 परिक्रमा करनी चाहिए.
0941. पूजन - में कुल देवता, कुल देवी, घर के वास्तु देवता, ग्राम देवता आदि का ध्यान करना भी आवश्यक है.
0942. पूजन - में पान का पत्ता भी रखना चाहिए. ध्यान रखें पान के पत्ते के साथ इलाइची, लौंग, गुलकंद आदि भी चढ़ाना चाहिए. पूरा बना हुआ पान चढ़ाएंगे तो श्रेष्ठ रहेगा.
0943. पूजन - में भगवान का आवाहन (आमंत्रित करना) करना, ध्यान करना, आसन देना, स्नान करवाना, धूप-दीप जलाना, अक्षत (चावल), कुमकुम, चंदन, पुष्प (फूल), प्रसाद आदि अनिवार्य रूप से होना चाहिए.
0944. पूजन - में हम जिस आसन पर बैठते हैं, उसे पैरों से इधर-उधर खिसकाना नहीं चाहिए. आसन को हाथों से ही खिसकाना चाहिए.
0945. पूजन - यदि आप प्रतिदिन घी का एक दीपक भी घर में जलाएंगे तो घर के कई वास्तु दोष भी दूर हो जाएंगे.
0946. पूजन - यदि किसी छोटे कमरे में पूजा स्थल बनाया गया है तो वहां कुछ स्थान खुला होना चाहिए, जहां आसानी से बैठा जा सके.
0947. पूजन - रोज रात को सोने से पहले मंदिर को पर्दे से ढंक देना चाहिए. जिस प्रकार हम सोते समय किसी प्रकार का व्यवधान पसंद नहीं करते हैं, ठीक उसी भाव से मंदिर पर भी पर्दा ढंक देना चाहिए. जिससे भगवान के विश्राम में बाधा उत्पन्न ना हो.
0948. पूजन - वर्षभर में जब भी श्रेष्ठ मुहूर्त आते हैं, तब पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए. गौमूत्र के छिड़काव से पवित्रता बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार गौमूत्र बहुत चमत्कारी होता है और इस उपाय घर पर दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा होती है.
0949. पूजन - शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है. जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए. खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है. इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है.
0950. पूजन - शिवजी को बिल्व पत्र अवश्य चढ़ाएं और किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए अपनी इच्छा के अनुसार भगवान को दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए, दान करना चाहिए. दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए. दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी.
0951. पूजन - शिवलिंग का पूजन किसी भी दिशा से किया जा सकता है लेकिन पूजन करते वक्त भक्त का मुंह उत्तर दिशा की ओर हो तो वह सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.
0952. पूजन - सदैव दाएं हाथ की अनामिका एवं अंगूठे की सहायता से फूल अर्पित करने चाहिए. चढ़े हुए फूल को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिए. फूल की कलियों को चढ़ाना मना है, किंतु यह नियम कमल के फूल पर लागू नहीं है.
0953. पूजन - सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए. प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए. इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है
0954. पूजा - अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं.
0955. पूजा - अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें. शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है. जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए. खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है. इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है.
0956. पूजा - आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है. ऐसा नहीं करना चाहिए. फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए.
0957. पूजा - किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए. दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी.
0958. पूजा - केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए.
0959. पूजा - गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें.
0960. पूजा - घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं. एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए.
0961. पूजा - घर में अभिमंत्रित श्र्री यंत्र रखें .
0962. पूजा - तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए.
0963. पूजा - तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं. तुलसी तोड़ने का मन्त्र (BASIL TULSI TODNE KA MANTRA) ॐ सुभद्राय नमः. ॐ सुप्रभाय नमः. मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी. नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमो5स्तुते..
0964. पूजा - तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है. इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है.
0965. पूजा - दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए.
0966. पूजा - पीपल मे जल देने का मन्त्र. कुलानामयुतं तेन तारितं नात्र संशयः. यो5श्वत्थमूलमासिंचेत्तोयेन बहुना सदा..
0967. पूजा - पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए.
0968. पूजा - पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा.
0969. पूजा - पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए. यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें.
0970. पूजा - पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए.
0971. पूजा - प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए. अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन. गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है.
0972. पूजा - बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए.
0973. पूजा - मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए.
0974. पूजा - मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता –पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें.
0975. पूजा - मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए. यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है.
0976. पूजा - मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है. इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ा सकते हैं.
0977. पूजा - रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए.
0978. पूजा - विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं.
0979. पूजा - शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5-6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए. इसके बाद प्रात: 9-10 बजे तक दूसरी बार का पूजन. दोपहर 1-2 में तीसरी बार पूजन करना चाहिए. इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए. शाम के समय 4-5 बजे पुन: पूजन और आरती. रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए. जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है.
0980. पूजा - शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं. अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है.
0981. पूजा - शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए.
0982. पूजा - सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए.
0983. पूजा - सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए. प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए. इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है.
0984. पूजा - स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए. यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं.
0985. पूजा - हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए.
0986. पूर्णिमा - अपने घर के मंदिर में प्रेम, शुभता और धन लाभ के लिए श्री यंत्र, व्यापार वृद्धि यंत्र, कुबेर यंत्र, एकाक्षी नारियल, दक्षिणवर्ती शंख आदि माता लक्ष्मी की प्रिय इन दिव्य वस्तुओं को अवश्य ही स्थान देना चाहिए. इनको साबुत अक्षत के ऊपर स्थापित करना चाहिए और हर पूर्णिमा को इन चावलों को जिनको आसान के रूप में स्थान दिया गया है उन्हें अवश्य ही बदल कर नए चावल रख देना चाहिए. पुराने चावलों को किसी वृक्ष के नीचे अथवा बहते हुए पानी में प्रवाहित कर देना चाहिए.
0987. पूर्णिमा - की रात में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें अर्थात चन्द्रमा को लगातार देखें इससे नेत्रों की ज्योति तेज होती है एवं पूर्णिमा की रात में चन्द्रमा की रौशनी में सुई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्र ज्योति बढती है.
0988. पूर्णिमा - के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए. इस दिन जुए, शराब आदि नशे और क्रोध एवं हिंसा से भी दूर रहना चाहिए. इस दिन बड़े बुजुर्ग अथवा किसी भी स्त्री से भूलकर भी अपशब्द ना बोलें.
0989. पूर्णिमा - के दिन चन्द्रमा की चाँदनी सभी मनुष्यों के लिए अत्यंत लाभदायक है.
0990. पूर्णिमा - के दिन मंदिर में जाकर लक्ष्मी को इत्र और सुगन्धित अगरबत्ती अर्पण करनी चाहिए. इत्र की शीशी खोलकर माता के वस्त्र पर वह इत्र छिड़क दें , उस अगरबत्ती के पैकेट से भी कुछ अगरबत्ती निकल कर जला दें फिर धन, सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी माँ लक्ष्मी से अपने घर में स्थाई रूप से निवास करने की प्रार्थना करें.
0991. पूर्णिमा - के दिन मां लक्ष्मी के चित्र पर 11 कौड़ियां चढ़ाकर उन पर हल्दी से तिलक करें. अगले दिन सुबह इन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें. इस उपाय से घर में धन की कोई भी कमी नहीं होती है. इसके पश्चात प्रत्येक पूर्णिमा के दिन इन कौड़ियों को अपनी तिजोरी से निकाल कर माता के सम्मुख रखकर उन पर पुन: हल्दी से तिलक करें फिर अगले दिन उन्हें लाल कपड़े में बांध कर अपनी तिजोरी में रखे. आप पर माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी.
0992. पूर्णिमा - के दिन शिवलिंग पर शहद, कच्चा दूध, बेलपत्र, शमीपत्र और फल चढ़ाने से भगवान शिव की जातक पर सदैव कृपा बनी रहती है. पूर्णिमा के दिन घिसे हुए सफ़ेद चंदन में केसर मिलाकर भगवान शंकर को अर्पित करने से घर से कलह और अशांति दूर होती है.
0993. पूर्णिमा - को चन्द्रमा के उदय होने के बाद साबूदाने की खीर मिश्री डालकर ,बनाकर माँ लक्ष्मी को उसका भोग लगाएं फिर उसे प्रशाद के रूप में वितरित करे, धन आगमन का मार्ग बनेगा.
0994. पूर्णिमा - जिस भी व्यक्ति को जीवन में धन सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन्हें पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को कच्चे दूध में चीनी और चावल मिलाकर ”ॐ ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: " या ” ॐ ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:. मन्त्र का जप करते हुए अर्ध्य देना चाहिए. इससे धीरे धीरे उसकी आर्थिक समस्याओं का निराकरण होता है.
0995. पूर्णिमा - प्रत्येक पूर्णिमा पर सुबह के समय घर के मुख्य दरवाज़े पर आम के ताजे पत्तों से बनाया हुआ तोरण अवश्य ही बांधें, इससे भी घर में शुभता का वातावरण बनता है.
0996. पूर्णिमा - यदि चन्द्रमा का प्रकाश गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है अत: गर्भवती स्त्रियों को तो विशेष रूप से कुछ देर अवश्य ही चन्द्रमा की चाँदनी में रहना चाहिए.
0997. पूर्णिमा - लम्बे और प्रेम से भरे दाम्पत्य जीवन के लिए पूर्णिमा और अमावस्या को जातक को शारीरिक सम्बन्ध बिलकुल भी नहीं बनाना चाहिए.
0998. पूर्णिमा - वैसे तो सभी पूर्णिमा का महत्व है लेकिन कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा आदि अति विशेष मानी जाती है.
0999. पूर्णिमा - शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सुबह लगभग 10 बजे पीपल के वृक्ष पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है. कहते है कि जो व्यक्ति इस दिन सुबह उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पीपल के पेड़ पर कुछ मीठा रखकर मीठा जल अर्पण करके धूप अगरबत्ती जला कर मां लक्ष्मी का पूजन करें और माता लक्ष्मी को अपने घर पर निवास करने के लिए आमंत्रित करें तो उस जातक पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है.
1000. पूर्णिमा - सफल दाम्पत्य जीवन के लिए प्रत्येक पूर्णिमा को पति पत्नी में कोई भी चन्द्रमा को दूध का अर्ध्य अवश्य ही दें ( दोनों एक साथ भी दे सकते है) , इससे दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है.
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