ध्यान रखें यहां बताए जा रहे सभी उपाय ज्योतिष से संबंधित हैं. इस कारण इन्हें आस्था और विश्वास के साथ करना चाहिए. उपाय करते समय मन में किसी प्रकार की शंका ना हो , इसका ख़याल रखे.
0801. परिवार - घर में तुलसी का पौधा लगाएं तथा प्रतिदिन इसका पूजन करें. सुबह-शाम दीपक लगाएं. इस को करने से घर में सदैव शांति का वातावरण बना रहेगा.
0802. परिवार - घर में सुख शांति के लिए बहू को चाहिए की सूर्योदय से पहले घर में झाडू लगाकर कचड़े को घर के बाहर फेंके, यह किसी काम वाली बाई से भी करा सकते है.
0803. परिवार - घर में सुख शांति के लिए मंगलवार को सूजी का हलवा बनाकर उसको मंदिर के बाहर बैठे गरीबों में स्वयं बाँटना चाहिए.
0804. परिवार - जिस घर की स्त्रियां / बहु घर के वायव्य अर्थात उत्तर-पश्चिम कोण में शयन / निवास करती है वह अपना अलग से घर बसाने के सपने देखने लगती है. इसलिए इस दिशा में नई दुल्हन को तो बिलकुल भी नहीं रखे अन्यथा उसका परिवार के साथ अलग होना तय है. वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार दक्षिण-पश्चिम कोण में सास को सोना चाहिए , उसके बाद बड़ी बहु को पश्चिम दिशा में और उससे छोटी बहु को पूर्व दिशा में शयन करना चाहिए. इससे घर की स्त्रियों में प्रेम बना रहेगा.
0805. परिवार - जो स्त्रियां घर के वायव्य उत्तर-पश्चिम कोण में शयन / निवास करती है उनके मन में उच्चाटन का भाव आने लगता है वह अपने अलग से घर बसाने के सपने देखने लगती है. इस लिए इस कोण में अविवाहित कन्याओं को निवास करना शुभ होता है जिससे उनका विवाह शीघ्र हो.
0806. परिवार - दक्षिण में सोने वाली स्त्री को अपने पति के बायीं और शयन करना चाहिए अग्नि कोण में सोने वाली स्त्री को अपने पति के दायी और शयन करना चाहिए.
0807. परिवार - दक्षिण-पश्चिम कोण दिशा घर की सबसे शक्तिशाली होती है इसमें सास को सोना चाहिए अगर सास ना हो तो घर की बड़ी बहू को सोना चाहिए उससे छोटी को पश्चिम दिशा में रहना चाहिए उससे भी छोटी तीसरे नम्बर की बहु को पूर्व दिशा में शयन करना चाहिए यदि और भी छोटी बहू हो तो उसे ईशान कोण में निवास रखना चाहिए.
0808. परिवार - नवदंपतियों के लिए बिस्तर बिलकुल नया होना चाहिए. कोशिश करें कि ऐसी चादर बिलकुल ही प्रयोग में न लाएँ जिसमें छेद हों. रोज़ रात को बिस्तर बिलकुल साफ करके ही सोयें.
0809. परिवार - परिवार का जो भी सदस्य यदि दक्षिण-पश्चिम में निवास करता है तो वह घर में प्रभावशाली हो जाता है अत: स्पष्ट है कि घर के मुखिया उसकी स्त्री को घर के दक्षिण-पश्चिम में निवास करना चाहिये. तथा कनिष्ठ स्त्री-पुरुष, देवरानिया या बहू को शयन नहीं करना चाहिये.
0810. परिवार - बेड के सामने या कहीं भी ऐसी जगह शीशा नहीं लगाना चाहिए, जहां से आपके बेड का प्रतिबिंब दिखता हो. इससे संबंधों में दरार आती है और आप अनिद्रा, और बदन दर्द के भी शिकार हो सकते हैं. यदि इसे टाला न जा सके तो आप रात्रि में उस शीशे पर एक पर्दा डालकर ही सोयें.
0811. परिवार - बैडरूम में प्रवेश द्वार वाली दीवार के साथ अपना बैड लगाने से बचना चाहिए. इससे आपसी रिश्तों में कटुता आती है. उस दीवार से सटाकर भी अपना बेड न लगाएँ जिसकी दूसरी ओर बाथरूम या टॉयलेट हो और न ही ऐसी जगह, जहां से बाथरूम या टॉयलेट का दरवाजा ठीक सामने दिखता हो. यदि ऐसा हो तो इसका दरवाजा हमेशा बंद कर के ही रखना चाहिए या बीच पर्दा जरूर डालें.
0812. परिवार - यदि किसी परिवार में सास बहु में झगड़ा होता रहता हो तो बहु पूर्णिमा की रात में खीर बनाकर चंद्रमा की किरणों में रखे और फिर वह खीर अपनी सास को खिला दे. इससे सास-बहू में बनने लगेगी. यह उपाय अगर बहु ना करे तो सास भी कर सकती है.
0813. परिवार - यदि किसी बुरी शक्ति के कारण घर में झगड़े होते हों तो प्रतिदिन सुबह घर में गोमूत्र अथवा गाय के दूध में गंगाजल मिलाकर छिड़कने से घर की शुद्धि होती है तथा बुरी शक्ति का प्रभाव कम होता है.
0814. परिवार - यदि किसी महिला की सास या ससुर उससे नाराज रहता हो तो वह महिला प्रतिदिन जल में गुड़ मिलाकर सूर्यदेव को अध्र्य दे तो उसकी यह समस्या दूर हो जाती है.
0815. परिवार - रंगों का रिश्तों पर बहुत ही खासा असर होता है. घर की दीवारों के लिए हलका गुलाबी, नीला, हल्का ग्रे या हल्का येलो रंग का ही प्रयोग करें. ये रंग शान्ति और प्यार को बड़ाने वाले माने जाते हैं.
0816. परिवार - रोटी बनाते समय तवा गर्म होने पर पहले उस पर ठंडे पानी के छींटे डाले और फिर रोटी बनाएं. लाभ होता है.
0817. परिवार - वायव्य कोण में नई दुल्हन को तो बिलकुल मत रखे इससे उसका परिवार के साथ अलगाव रहेगा.
0818. परिवार - सास बहु में कलेश होने पर जो चाहता है कि आपसी रिश्ते सुधरे उसे गले में चांदी की चेन धारण करनी चाहिए और यह भी ध्यान रहे कि कभी किसी से भी कोई सफेद वस्तु न लें.
0819. परिवार - हमेशा याद रखिये कि अपना बिस्तर खिड़की से सटाकर कभी भी न लगाएँ. इससे रिश्तों में तनाव उत्पन्न होता है और आपसी असहयोग की प्रवृत्ति बडती है. ऐसी स्थिति से बचने के लिए अपने सिरहाने और खिड़की के बीच पर्दा जरूर डालें. इससे नकारात्मक ऊर्जा आपके रिश्तों पर असर नहीं कर पाएगी.
0820. परिवार - हर दम्पति यह कोशिश करें कि उसके पलंग के नीचे कुछ भी सामान न रखा हो. पलंग के नीचे जगह को खाली रहने दें. इससे आपके बेड के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा बिना किसी बाधा के प्रवाहित हो सकेगी.
0821. परिवार - अश्विनी नक्षत्र वाले दिन एक रंग वाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर वह दूध निःसंतान स्त्री को पिलाने से उसे संतान की प्राप्ति होती है.
0822. परिवार - आत्मा और परमात्मा के मिलन के लिए परिवार के सदस्य सुख और शांति के लिए कड़ी मेहनत, परिश्रम और पुरुषार्थ करें.
0823. परिवार - एक साबूत पानीदार नारियल लें और उसे अपने उपर से 21 बार वारकर किसी देवस्थान की आग में डाल दें. यह उपाय आप मंगलवार और शनिवार को ही करें. ऐसा पांच बार करें. ऐसा घर के सभी सदस्यों के उपर से वारकर करेंगे तो उत्तम होगा.
0824. परिवार - कर्मेंन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों पर संयम रखना. जिसका मतलब है परिवार के सदस्य शौक-मौज में इतना न डूब जाए कि कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को भूलने से परिवार दु:ख और कष्टों से घिर जाए.
0825. परिवार - किचन कभी भी घर के ईशान कोण या मध्य में ना हो, यह आपसी संबंधों के लिए बेहद घातक है.
0826. परिवार - के सदस्य संस्कार और जीवन मूल्यों से जुड़े रहें. अपने बड़ों का सम्मान करें. रोज सुबह उनका आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत करें ताकि सभी का स्वभाव, चरित्र और व्यक्तित्व श्रेष्ठ बने.
0827. परिवार - जिस कुल के पितृ और कुल देवता उस कुल के लोगों से संतुष्ट रहते हैं. उनकी सात पीढिय़ां खुशहाल रहती है.
0828. परिवार - जिस घर में किचन में खाना बिना चखें भगवान को अर्पित किया जाता है. उस घर में कभी अन्न और धन की कमी नहीं होती है.
0829. परिवार - ना करें - माँ-बाप का अपमान नही करना चाहिये.
0830. परिवार - परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें. कुछ ही दिनों में आपकी यह समस्या दूर हो जाएगी.
0831. परिवार - पारिवारिक सदस्य सुख शांति से न रहते हों तो शनिवार के दिन सुबह काले कपड़े में नालियल लपेटकर 21 काजल की बिंदी लगा लें और घर के बाहर लटका दें. लाभ होगा.
0832. परिवार - बांस का पौधा रोपना अशुभ होता है. जामुन और अमरूद को छोड़कर फलदार वृक्ष भवन की सीमा में नहीं होने चाहिए. इससे बच्चों का स्वास्थ्य खराब होता है.
0833. परिवार - मिश्री संग खाने से गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है तथा बच्चा सुंदर होता है।
0834. परिवार - यदि कन्या 7 साबुत हल्दी की गांठें, पीतल का एक टुकड़ा, थोड़ा सा गुड लेकर ससुराल की तरफ फेंक दें तो वह कन्या को ससुराल में सुख ही सुख मिलता है.
0835. परिवार - यदि पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता है तो ज्योतिषानुसार शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को पत्नी अशोक वृक्ष की जड़ में घी का दीपक और चंदन की अगरबत्ती जलाकर नैवेद्य चढ़ाएं. पेड़ को जल अर्पित करते समय उससे अपनी कामना करनी चाहिए. फिर वृक्ष से 7 पत्ते तोड़कर घर लाएं, श्रद्धाभाव से उनकी पूजा करें व घर के मंदिर में रख दें. अगले सोमवार फिर से यह उपासना करें तथा बाद में सूखे पत्तों को बहते जल में प्रवाहित कर दें.
0836. परिवार - सास या बहु में जो भी कोई सम्बन्ध सुधारने को इच्छुक हो वह शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से माथे पर हल्दी या केसर की बिंदी लगाना शुरू करें.
0837. परिवार - सास व बहू के आपसी संबंध में कटुता होने पर बहू या सास दोनों में कोई भी चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें, और ईश्वर से अपनी सास / बहु से सम्बन्ध अच्छे रहने की प्रार्थना करे. इससे दोनों के बीच में सम्बन्ध प्रगाढ़ होते है.
0838. परिवार - सास-ससुर का कमरा सदैव दक्षिण-पश्चिम दिशा में ही होना चाहिए और बेटे-बहू का कमरा पश्चिमी या दक्षिण दिशा में. अगर बेटे-बहू का रूम दक्षिण-पश्चिम में होता है, तो उनका सास-ससुर से झगडा बना ही रहेगा. परिवार पर अपना नियंत्रण रखने के लिए इस दिशा में घर के बडों को ही रहना चाहिए.
0839. परिवार - सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है.
0840. पितृ दोष - सूर्यदेव को हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि मैं श्राद्ध के लिए जरूरी धन और साधन न होने से पितरों का श्राद्ध करने में असमर्थ हूं. इसलिए आप मेरे पितरों तक मेरा भावनाओं और प्रेम से भरा प्रणाम पहुंचाएं और उन्हें तृप्त करें. लाभ होता है.
0841. पितृ दोष - अगर कोई व्यक्ति गरीब हो और चाहने पर भी धन की कमी से पितरों का श्राद्ध करने में समर्थ न हो पाए तो वह किसी पवित्र नदी के जल में काले तिल डालकर तर्पण करे.
0842. पितृ दोष - गुड़-घी की धूप देने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है. घर में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता है.
0843. पितृ दोष - घर-परिवार में किसी न किसी कारण झगड़ा होता रहता है। परिवार के सदस्यों में मनमुटाव बना रहता है व मानसिक अशांति के कारण जीना दूभर हो जाता है।
0844. पितृ दोष - जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है उनके यहां संतान होने में समस्याएं आती हैं। कई बार तो संतान पैदा ही नहीं होती और यदि संतान हो जाए तो उनमें से कुछ अधिक समय तक जीवित नहीं करती है।
0845. पितृ दोष - जिन लोगों को पितृ दोष होता है, उनकी शादी होने में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं।
0846. पितृ दोष - पितरों के श्राद्ध में केवल एक ब्राह्मण को भोजन कराए या भोजन सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान करें. इससे पितृ दोष का प्रभाव कम होता है.
0847. पितृ दोष - पितरों को याद कर गाय को चारा खिला दे. इससे भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं.
0848. पितृ दोष - पितृ दोष होने के कारण कन्या के विवाह में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है या तो कन्या का विवाह जल्दी नहीं होता या फिर मनचाहा वर नहीं मिल पाता.
0849. पितृ दोष - पितृ दोष होने पर परिवार का एक न एक सदस्य निरंतर रूप से बीमार रहता है। यह बीमारी भी जल्दी ठीक नहीं होती।
0850. पितृ दोष - यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक किसी मुकद्में में उलझा रहे या बिना किसी कारण उसे कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटना पड़े तो ये भी पितृ दोष का कारण हो सकता है।
0851. पितृ दोष - विद्वान ब्राह्मण को एक मुट्ठी काले तिल दान करने मात्र से भी फायदा होता है. लाभ होता है.
0852. पितृ दोष - होने के कारण ऐसे लोगों को हमेशा धन की कमी रहती है। किसी न किसी रूप में धन की हानि होती रहती है।
0853. पितृ दोष उपाय - अगर कोई व्यक्ति गरीब हो और चाहने पर भी धन की कमी से पितरों का श्राद्ध करने में समर्थ न हो पाए तो वह किसी पवित्र नदी के जल में काले तिल डालकर तर्पण करे। इससे भी पितृ दोष में कमी आती है।
0854. पितृ दोष उपाय - अगर श्राद्ध करने वाले की साधारण आय हो तो वह पितरों के श्राद्ध में केवल एक ब्राह्मण को भोजन कराए या भोजन सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान करें। इससे पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।
0855. पितृ दोष उपाय - तो सूर्यदेव को हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि मैं श्राद्ध के लिए जरूरी धन और साधन न होने से पितरों का श्राद्ध करने में असमर्थ हूं। इसलिए आप मेरे पितरों तक मेरा भावनाओं और प्रेम से भरा प्रणाम पहुंचाएं और उन्हें तृप्त करें.
0856. पितृ दोष उपाय - पितरों को याद कर गाय को चारा खिला दे। इससे भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं।
0857. पितृ दोष उपाय - ब्राह्मण को एक मुट्ठी काले तिल दान करने मात्र से भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं।
0858. पितृ पक्ष में दान - अनाज का - अन्नदान में गेहूं, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
0859. पितृ पक्ष में दान - किसी भी प्रकार का दान करते समय यह श्लोक बोलकर भगवान विष्णु से श्राद्धकर्म की शुभ फल की प्रार्थना करना चाहिए.
0860. पितृ पक्ष में दान - गाय का - धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है।
0861. पितृ पक्ष में दान - गुड़ का - गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
0862. पितृ पक्ष में दान - घी का - श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
0863. पितृ पक्ष में दान - चांदी का - पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चांदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
0864. पितृ पक्ष में दान - तिल का - श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
0865. पितृ पक्ष में दान - नमक का - पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।
0866. पितृ पक्ष में दान - ब्राह्मणों को दान देते समय यह मंत्र बोलना चाहिए. "यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।।"
0867. पितृ पक्ष में दान - भूमि का - अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतान लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
0868. पितृ पक्ष में दान - वस्त्रों का - इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।
0869. पितृ पक्ष में दान - सोने का - सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।
0870. पितृपक्ष - (श्राद्ध) तर्पण, इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है. श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है.
0871. पितृपक्ष - इन दिनों दाढ़ी मूंछें भी नहीं काटे जाते हैं. इसका संबंध भी शोक व्यक्त करने से है.
0872. पितृपक्ष - इन दिनों नए वाहन नहीं खरीदने चाहिए. असल में वाहन खरीदने में कोई बुराई नहीं है. शास्त्रों में इस बात की कहीं मनाही नहीं है. बात बस इतनी है कि इसे भौतिक सुख से जोड़कर जाना जाता है. जब आप शोक में होते हैं तो या किसी के प्रति दुख प्रकट करते है तो जश्न नहीं मनाते हैं. इसलिए धारणा है कि इन दिनों वाहन नहीं खरीदना चाहिए
0873. पितृपक्ष - ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए यानी स्त्री पुरुष संसर्ग से बचना चाहिए. इसके पीछे यह धारणा है कि पितर आपके घर में होते हैं और यह उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का समय होता है इसलिए इन दिनों संयम का पालन करना चाहिए.
0874. पितृपक्ष - कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं. इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं. पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं.
0875. पितृपक्ष - चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं.
0876. पितृपक्ष - चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है.
0877. पितृपक्ष - जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए. इससे वे प्रसन्न होते हैं. श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए.
0878. पितृपक्ष - जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते.
0879. पितृपक्ष - तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें. श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं.
0880. पितृपक्ष - तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं. तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं.
0881. पितृपक्ष - तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें. इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें.
0882. पितृपक्ष - दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है.
0883. पितृपक्ष - दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए. वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है. अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है.
0884. पितृपक्ष - द्वार पर आए अतिथि और याचक को बिना भोजन पानी दिए जाने नहीं देना चाहिए. माना जाता है कि पितर किसी भी रुप में श्राद्ध मांगने आ सकते हैं. इसलिए किसी का अनादर नहीं करना चाहिए.
0885. पितृपक्ष - पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है. इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें.
0886. पितृपक्ष - पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों
0887. पितृपक्ष - बिना पितरों को भोजन दिया स्वयं भोजन नहीं करना चाहिए इसका मतलब यह है कि जो भी भोजन बने उसमें एक हिस्सा गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ को खिला देना चाहिए.
0888. पितृपक्ष - ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है.
0889. पितृपक्ष - ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं. ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं.
0890. पितृपक्ष - भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं 1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ.
0891. पितृपक्ष - भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है. श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं.
0892. पितृपक्ष - माना जाता है कि पितृपक्ष में नया घर नहीं लेना चाहिए. जहां पितरों की मृत्यु हुई होती है वह अपने उसी स्थान पर लौटते हैं. अगर उनके परिजन उस स्थान पर नहीं मिलते हैं तो उन्हें तकलीफ होती है.
0893. पितृपक्ष - में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए. यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं. दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए.
0894. पितृपक्ष - में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है. पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है. पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है.
0895. पितृपक्ष - में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है. तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है. वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं. कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं.
0896. पितृपक्ष - में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं. श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है.
0897. पितृपक्ष - में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं.
0898. पितृपक्ष - में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं.
0899. पितृपक्ष - में ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें.
0900. पितृपक्ष - में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल. केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है. सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं. इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है.